चश्म-ए-यक़ीं से देखिए जल्वा-गह-ए-सिफ़ात में हुस्न ही हुस्न है तमाम इश्क़ की काएनात में ऐसे भी वक़्त आए हैं इश्क़ की वारदात में मस्तियाँ झूम झूम उठीं दीदा-ए-कायनात में तू मिरी सरगुज़िश्त-ए-ग़म सुन के करेगा क्या नदीम वक़्फ़-ए-ख़लिश है हर-नफ़स दर्द है बात बात में जाम-ओ-शराब-ओ-ख़ुम सुबू साक़िया हैं बराए-नाम नश्शा तिरी नज़र का है मय-कदा-ए-हयात में जिस का अनीस तेरा ग़म जिस की रफ़ीक़ तेरी याद उस को मिला सुकून-ए-दिल बज़्म-ए-तग़य्युरात में तर्क-ओ-तलब के मरहले इस तरह हम ने तय किए सामने मेरे वो रहे आईना-ए-हयात में आलम-ए-बे-ख़ुदी में गर सज्दा किया कोई 'वक़ार' बन गया नक़्श-ए-जावेदाँ मंज़िल-ए-बे-सबात में