चौंका है आज यूँ तिरा दीवाना ख़्वाब में जैसे कि मिल गया कोई वीराना ख़्वाब में लिखना है पिछले दिन का भी अफ़्साना ख़्वाब में ऐ होने वाली सुब्ह न आ जाना ख़्वाब में दिन-भर की मुश्किलात की दूनी सज़ा मिली बेदारियों का ख़्वाब है दोहराना ख़्वाब में हम को ग़म-ए-जहाँ ने दिलासे बहुत दिए बहलाना जागते में तो समझाना ख़्वाब में सुब्ह-ए-सुबू-ब-दस्त से अब के मिलेंगे हम दार-ओ-रसन पे आए हैं रिंदाना ख़्वाब में शायद कि आज गर्दन-ए-साक़ी में हाथ हों छीना है एक शख़्स से पैमाना ख़्वाब में