चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद हम ने जीने का गुर जाना ज़हर के इस्तिमाल के बाद किस को ख़बर थी मुख़्तारी में होंगे वो इतने मजबूर हम अपने से शर्मिंदा हैं उन से अर्ज़-ए-हाल के बाद अपने सिवा अपने रिश्ते में और भी कुछ दुनियाएँ थीं हम ने अपना हाल लिक्खा लेकिन दीगर अहवाल के बाद आँखें यूँ ही भीग गईं क्या देख रहे हो आँखों में बैठो साहब कहो सुनो कुछ मिले हो कितने साल के बाद तोड़े कितने आईने और छान लिए कितने आफ़ाक़ कोई न मंज़र आँख में ठहरा उस के अक्स-ए-जमाल के बाद नक़्श-गरी का बूता हो तो धूप छाँव में रंग बहुत चेहरा ख़ुद बन जाएगा टेढ़ी-मेढ़ी अश्काल के बाद