चेहरा बता रहा है रातों को जागते हो कैसी थकन मिली है हँस कर उतारते हो किस के क़दम पड़े थे कैसे निशाँ पड़े हैं किस के ग़मों की मिट्टी आँगन से झाड़ते हो लिक्खो कभी कि मुझ को तुम याद कर रहे हो मसरूफ़ियत के लम्हे भी मुझ पे वारते हो छोड़ा था तुम ने जैसा ठहरे हुए हैं अब तक और तुम गली गली में हम को पुकारते हो रुख़्सत करो ना हँस कर आँखों से दो दुआएँ जाने पे मेरे ऐसे क्यों मुँह बिगाड़ते हो तारे हुए हैं मद्धम चंदा चला गया है याँ रात हो चुकी है तुम दिन गुज़ारते हो मौसम हुआ है बरहम बेचैन हैं फ़ज़ाएँ ऐसे में तुम 'दिया' की ज़ुल्फ़ें सँवारते हो