चेहरा-ए-ज़िंदगी निखर आया जब कभी हम ने जाम छलकाया शाम-ए-हिज्राँ भी इक क़यामत थी आप आए तो मुझ को याद आया रंग फीका पड़ा वफ़ाओं का आज कुछ इस तरह वो शरमाया यूँ तो बे-चैनियाँ मुक़द्दर थीं तेरी क़ुर्बत ने और तड़पाया क्या क़यामत वो कम-निगाही थी हर हक़ीक़त को जिस ने झुठलाया क्या हुई वो दिलों की मासूमी हुस्न रूठा न इश्क़ पछताया हाए किस किस मक़ाम पर दिल को उस उचटती नज़र ने भटकाया ख़ुद-शनासी थी जुस्तुजू तेरी तुझ को ढूँडा तो आप को पाया 'नक़्श' आँखों में आ गए आँसू आज ऐसे में कौन याद आया