चेहरों पे लिक्खे लोगों के सदमे पढ़ा करो क़ब्रों पे लिक्खे मर्दों के कत्बे पढ़ा करो रखते हैं क्या वो बस्तों में बस्ते पढ़ा करो लिखते हैं क्या वो पर्चों में पर्चे पढ़ा करो मालूम तो हो मिट्टी कि दलदल थी पाँव में जो हो सके तो बूटों के तस्मे पढ़ा करो दुख देने का जो सोचो किसी भी अज़ीज़ को तो फिर क़रीब से सभी रिश्ते पढ़ा करो ये न सुनो कि क्या क्या वो कहते रहे तुम्हें जो हो सके तो लोगों के लहजे पढ़ा करो चढ़ते हैं लोग फाँसी पे किस जुर्म के तहत तख़्ती तो पढ़ ही लेते हो तख़्ते पढ़ा करो जब बाज़ी हारने लगो तो ग़ौर से ज़रा शतरंज पे बिछे हुए मोहरे पढ़ा करो सोचो कभी तलाक़ का तो इस से बेशतर शादी पे लिखे बेटों के सेहरे पढ़ा करो आँखें पढ़ो कि इन में ये पानी है किस लिए मैं ने ये कब कहा है कि चेहरे पढ़ा करो