छत पे बदली झुकी सी रहती है कब से बारिश थमी सी रहती है कोई शब धूप की सी कैफ़िय्यत कोई दिन चाँदनी सी रहती है एक हस्ती मिरी अनासिर चार हर तरफ़ से घिरी सी रहती है कैसे जी-भर के देखिए उस को देखने में कमी सी रहती है कोई इक ज़ाइक़ा नहीं मिलता ग़म में शामिल ख़ुशी सी रहती है जब से माइल हुए हैं मेरे क़दम राह मुझ से खिंची सी रहती है इक न इक शग़्ल चाहिए उस को मुझ में दीवानगी सी रहती है तीर अंधेरे में जब चलाता हूँ ध्यान में रौशनी सी रहती है शाख़-ए-उम्मीद को ख़िज़ाँ न बहार ये सब दिन हरी सी रहती है एक ख़ित्ते के बोझ से राही सारी दुनिया दबी सी रहती है