छाने होंगे सहरा जिस ने वो ही जान सका होगा मिट्टी में हम जैसे मिले हैं कम कोई ख़ाक हुआ होगा उल्टे सीधे गिरते-पड़ते चल पड़ते हैं इस लिए हम मंज़िल पर ले जाने वाला कोई तो नक़्श-ए-पा होगा इतनी सज-धज से जो चले थे क़ाफ़िले वो हैं ठहर गए होगा हवा-ए-सहरा जैसा आगे जो भी गया होगा कुछ होने से अन-होने से फ़र्क़ तो पड़ने वाला नहीं हो नहीं पाया अब तक कुछ भी होगा भी तो क्या होगा मुड़ के जो आ नहीं पाया होगा उस कूचे में जा के 'ज़फ़र' हम जैसा बे-बस होगा हम जैसा तन्हा होगा