छटा ग़ुबार तो आँखों में भर गया पानी ज़रा सी देर में सर से गुज़र गया पानी न था ख़याल कि छत भी है आसमाँ जैसी तड़प रहे थे कि जाने किधर गया पानी लबों पे हर्फ़-ए-दुआ राख हो गया लेकिन दिलों में ज़ख़्म की सूरत उतर गया पानी इक ए'तिबार सी दीवार-ए-आब है हर-सू मिरे वजूद को ज़ंजीर कर गया पानी वो भीगा जिस्म वो पैराहन-ए-हया की शफ़क़ फिर इक गुलाब को शादाब कर गया पानी