छिड़ी है जंग मुसलसल मिरी अना के साथ मैं अपनी वज़्अ पे क़ाएम रहूँ बक़ा के साथ मिरी जिलौ में अंधेरा क़याम करता है कि मेरा राब्ता अच्छा नहीं दिया के साथ किसी ने अपनी समाअ'त का दर नहीं खोला बुरा सुलूक हुआ है मिरी सदा के साथ बचा के कार-ए-ग़लत से न रख सका ख़ुद को वफ़ाएँ करता रहा मैं भी बेवफ़ा के साथ ये अब खुला वो भरम था मिरी निगाहों का कि चल पड़ा मैं किसी ग़ैर-आश्ना के साथ