छिन गए ख़ुद से तुम्हारे हो गए तुम पे आशिक़ दिल के मारे हो गए कुछ दिन आवारा फिरे सय्यारा-वार रह गए तुम पर सितारे हो गए तुझ पे क़ुर्बां ऐ जमाल-ए-अहद-ए-सोज़ जिस के ब्याहे भी कुँवारे हो गए क्या उसी को कहते हैं रब्त-ए-दिली चोर दिल के जाँ से प्यारे हो गए हम थे तेरे ख़ाकसारों में शुमार हासिदों में चाँद-तारे हो गए चार नज़रें चार बातें चार दिन हम तुम्हारे तुम हमारे हो गए इक नज़र करने से तेरा क्या गया अहल-ए-दिल के वारे-न्यारे हो गए कुछ तो ख़ुद दिल फेंक थे 'राहील' हम कुछ उधर से भी इशारे हो गए