छुप गया सूरज ये कह कर शाम से ले सबक़ दुनिया मिरे अंजाम से रूह को हम ने हज़ारों दुख दिए नफ़्स को रक्खा बड़े आराम से एक बाज़ीचा समझ कर अहल-ए-दिल खेलते हैं गर्दिश-ए-अय्याम से सोचिए हर ज़ाविए से दहर में कैसे गुज़रे ज़िंदगी आराम से कर दिया साक़ी ने साग़र चूर चूर छीन कर इक रिंद-ए-तिश्ना-काम से कौन दर पर रह गया दम तोड़ कर देखते तो तुम उतर कर बाम से हो गया बरहम निज़ाम-ए-मयकदा एक आवाज़-ए-शिकस्त-ए-जाम से आख़िरश फ़र्त-ए-मसाइब पर 'जली' रोते रोते सो गया आराम से