छुपा हुआ था मगर आश्कार होना पड़ा ये जंग जीत के मुझ को फ़रार होना पड़ा सवारी कोई मयस्सर थी कब सफ़र के लिए सो अपने सर पे ही मुझ को सवार होना पड़ा ये सोचता हूँ कहीं इस की वज्ह मैं तो नहीं ये दर-ब-दर जो मुझे बार बार होना पड़ा शदीद चोट से आँखें फटी रहीं मेरी इसी लिए मुझे ज़िंदा शुमार होना पड़ा वो इक ख़ुशी जो अकेली भटकती फिर रही थी ग़मों के साथ उसे हम-कनार होना पड़ा ये देस भी मुझे परदेस की तरह मिला है मुझे वतन में ग़रीब-उद-दयार होना पड़ा किया है अंधा तिरे दिन की रौशनी ने मुझे मिरे वजूद को अंदर से ग़ार होना पड़ा ये उम्र कम थी तिरी राह देखने के लिए इसी लिए तो हमें शर्मसार होना पड़ा उस आइने ने मुझे अक्स में छुपा लिया था सो आइने के मुझे आर-पार होना पड़ा जब इस क़तार के अगले सिरे पे पोंह्च गया मुझे क़तार से फिर बे-क़तार होना पड़ा