छुपा कर इश्क़ की ख़ुशबू को तो रखा नहीं जाता नज़र उस को भी पढ़ लेती है जो लिखा नहीं जाता बहुत हलचल सी होती है हमारे ख़ून में यारो किसी पर ज़ुल्म हो तो हम से वो देखा नहीं जाता किसी की बद-दुआ' उस की तरक़्क़ी रोक देती है तकब्बुर का शजर फलता है पर ऊँचा नहीं जाता बहाने नित नए हर दिन बुना करते हो तुम साहब हमें ये साफ़ ही कह दो कि अब आया नहीं जाता ये शफ़क़त उन के हक़ में न कोई दीवार बन जाए बिगड़ जाते हैं ये बच्चे अगर टोका नहीं जाता जिसे चाहा था पूजा था 'ज़मन' गहराई से दिल की हमारे ज़ेहन के गोशे से वो चेहरा नहीं जाता