चोरी में दिल की वो हुनर कर गया देखते ही आँखों में घर कर गया दहर में मैं ख़ाक-बसर ही रहा उम्र को इस तौर बसर कर गया दिल नहीं है मंज़िल-ए-सीना में अब याँ से वो बेचारा सफ़र कर गया हैफ़ जो वो नुस्ख़ा-ए-दिल के उपर सरसरी सी एक नज़र कर गया किस को मिरे हाल से थी आगही नाला-ए-शब सब को ख़बर कर गया गो न चला ता-मिज़ा-ए-तीर-ए-निगह अपने जिगर से तू गुज़र कर गया मज्लिस-ए-आफ़ाक़ में परवाना साँ 'मीर' भी शाम अपनी सहर कर गया