चोट दिल पर लगे और आह ज़बाँ से निकले दर्द उठ्ठे है कहाँ और कहाँ से निकले प्यार है उस को अगर मुझ से तो अंजाम ये हो घर जले मेरा धुआँ उस के मकाँ से निकले सी लिया हम ने तो उल्फ़त में लबों को अपने अब किसी दर्द की आवाज़ कहाँ से निकले मुझ को मरने का नहीं ख़ौफ़ तमन्ना ये है रूह महबूब की बाँहों में यहाँ से निकले चूक आँखों से हुई है यही सच है वर्ना कोई घायल न हो जब तीर कमाँ से निकले ठोकरें खा के भी सँभले न ज़माने की हम हाथ मलते हुए चुप-चाप जहाँ से निकले हम को ज़र्रा ही समझते थे सितारे लेकिन बन के हम चाँद 'अरुण' सारे जहाँ से निकले