चुप हूँ सब जानता मगर हूँ मैं ये न समझो कि बे-ख़बर हूँ मैं यूँ तो कहने को इक शजर हूँ मैं लेकिन अफ़्सोस बे-समर हूँ मैं कोई अपना है मेरी कमज़ोरी वर्ना सच्ची बड़ा निडर हूँ मैं आज बे-फ़िक्र हो के सो जाओ मेरे घर वालो आज घर हूँ मैं ज़ेहन में लाइनें हैं सड़कें हैं अब तो लगता है ख़ुद सफ़र हूँ मैं हर तरफ़ ख़ुश्बूओं से भर दूँगा मौसम-ए-गुल का मुंतज़िर हूँ मैं मुझ पे चल कर तो देखिए 'उल्फ़त' मख़मली घास की डगर हूँ मैं