चुरा के मेरे ताक़ से किताब कोई ले गया मिरी तमाम उम्र का हिसाब कोई ले गया ये वाक़िआ' है जब लुटी मिरे चमन की आबरू लरज़ती शाख़ रह गई गुलाब कोई ले गया वही तो इक ज़रीया-ए-नजात मेरे पास था मगर मिरे ज़मीर का सवाब कोई ले गया सवाल बन के रू-ब-रू खड़ी हुई थी ज़िंदगी मिरा लहू निचोड़ कर जवाब कोई ले गया मिरे बदन में चुभ रही थीं सूइयाँ सी रात भर सहर हुई तो लुत्फ़-ए-इज़्तिराब कोई ले गया छुपा लिया है मैं ने सारा दर्द अपनी रूह में तसल्लियों का ज़ाहिरी नक़ाब कोई ले गया