चुटकियाँ ली ही कि उठ बैठ जो मर जाए कोई ऐ सितमगर तिरे हाथों से किधर जाए कोई क्यूँ की गुज़रेगी न गुज़रोगे जो तुम यार इधर पस ये मर्ज़ी है कि बस जैसे गुज़र जाए कोई मिरे मरने से तिरा शोहरा हुआ या क़िस्मत कि बिगड़ जाए कोई और सँवर जाए कोई एक दम का भी भरोसा नहीं मानिंद-ए-हयात बहर-ए-हस्ती में हबाब आ के उभर जाए कोई शम्अ' साँ सर न कटे उस का ये इम्कान नहीं बज़्म-ए-ख़ूबाँ में जो बा-दीदा-ए-तर जाए कोई दिल मिरा तुम ने चुराया मुझे उल्टी है ये फ़िक्र न ख़बर पाए कोई ता न बिफर जाए कोई आप के अहद में ये रस्म है देखी हम ने कि गुनहगार कोई और हो डर जाए कोई घर से निकलो कि हमें घर की न कुछ याद रहे घर में बैठे हुए कहती हो न घर जाए कोई यूँ तो समझे सुने आती नहीं 'एहसाँ' को समझ क्या तमाशा हो कि दिल ले के मुकर जाए कोई