क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए जो तिलिस्मात न टूटे थे कभू टूट गए सैकड़ों कासा सर-ए-दहर में मानिंद-ए-हबाब कभू ऐ चर्ख़ बने तुझ से कभू टूट गए टाँके क्या जैब के फिर बाद-ए-रफ़ू टूट गए हो के नाख़ुन कभी सीने में फ़रो टूट गए तू जो कहता है कि दे ग़ैर को भी साग़र-ए-मय हाथ क्या उस के हैं ऐ आईना-रू टूट गए क्यूँके बिन कश्ती-ए-मय कीजिए सैर-ए-दरिया मय-कशो ज़ेर-ए-बग़ल अब तो कदू टूट गए देख कर सुरमे की तहरीर तिरी आँखों में काफ़िरों के भी हैं ज़ुन्नार गुलू टूट गए सदमा-ए-ग़म से तिरे जूँ गुल-बाज़ी अफ़्सोस सारे आ'ज़ा मिरे ऐ अरबदा-जू टूट गए संग-ए-ग़ैरत से कई आईने ऐ अहद शिकन देख कर साफ़ तिरा रू-ए-नकू टूट गए तीर दिल से वो निकलते हैं कोई जज़्बा-ए-शौक़ निकले सूफ़ार जो सीने से गुलू टूट गए दिल शिकस्ता ही रहा बा'द-ए-फ़ना भी मैं तो कि मिरी ख़ाक से बनते ही सुबू टूट गए शिद्दत-ए-गिर्या से था रात ये अश्कों का हुजूम चश्म-ए-तर फिर मिरे मिज़्गाँ के हैं मू टूट गए गुलशन-ए-इश्क़ में अल्लाह है क्या कसरत-ए-बार बिन हवा कितने ही नख़्ल-ए-लब-ए-जू टूट गए कह ब-तब्दील-ए-क़वाफ़ी ग़ज़ल इक और भी 'ज़ौक़' देखें बिठलाए है किस तरह से तू टूट गए