क्यूँ ज़ीस्त का हर एक फ़साना बदल गया ये हम बदल गए कि ज़माना बदल गया सय्याद याँ वही वही ताइर वही हैं दाम लेकिन जो ज़ेर-ए-दाम था दाना बदल गया बाज़ी-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में कुछ हार है न जीत नज़रें मिलीं दिलों का ख़ज़ाना बदल गया बख़्त-ए-बशर वही है बिसात-ए-जहाँ वही हर दौर-ए-नौ में मात का ख़ाना बदल गया ताक़त के दोश पर है अज़ल से बशर की लाश बस थोड़ी थोड़ी दूर पे शाना बदल गया महफ़िल के हस्ब-ए-ज़ौक़ है मुतरिब का साज़ भी महफ़िल बदल गई तो तराना बदल गया इन दाग़-हा-ए-दिल में कोई ज़ख़्म-ए-नौ नहीं शायद किसी नज़र का निशाना बदल गया 'मुल्ला' को ज़ोर-ए-तब्अ हुआ फ़ैसलों की नज़्र दरिया अभी वही है दहाना बदल गया