क्यूँ ख़ुद-बख़ुद फिरी निगह-ए-यार क्या सबब क्यूँ सर-निगूँ है अब्रू-ए-ख़म-दार क्या सबब क़िस्मत पलट गई कि नसीबा उलट गया क्यूँ ख़ुद-बख़ुद फिरी निगह-ए-यार किया सबब क्या आ गया क़रीब ज़माना विसाल का क्यूँ बे-क़रार है ये दिल-ए-ज़ार क्या सबब ताक़त कहाँ से आ गई इस ना-तवाँ में आज दम तोड़ता जो है दिल-ए-बीमार क्या सबब किस से लड़ी निगाह ये किस पर इताब है होते हैं बंद रौज़न-ए-दीवार क्या सबब फ़ुर्क़त की रात रोज़-ए-क़यामत कहीं न हो होती नहीं जो सुब्ह-ए-शब-ए-तार क्या सबब 'अंजुम' गए थे उन को सुनाने की वास्ते फिर हाल-ए-दिल किया जो न इज़हार क्या सबब