क्यूँ न महकें गुलाब आँखों में हम ने रक्खे हैं ख़्वाब आँखों में रात आई तो चाँद सा चेहरा ले के आया शराब आँखों में देखो हम इक सवाल करते हैं लिख रखना जवाब आँखों में इस में ख़तरा है डूब जाने का झाँकिए मत जनाब आँखों में कभी आँखें किताब में गुम हैं कभी गुम हैं किताब आँखों में कोई रहता था रात दिन 'अल्वी' इन्हीं ख़ाना-ख़राब आँखों में