दाएरे खींच लिए बात से आगे न गए तंग-नज़र लोग रिवायात से आगे न गए चाहते हम तो बहुत कुछ थे ज़माने में मगर तुझ को चाहा तो तिरी ज़ात से आगे न गए कारवाँ ठहर गए रात गुज़र जाने तक राहबर थे कि रिवायात से आगे न गए तुझ से बिछड़े तो कई बार सदा आई हमें हम गए भी तो ख़राबात से आगे न गए हम को 'मुमताज़' थी उम्मीद वफ़ा की जिन से वो भी दो चार मुलाक़ात से आगे न गए