दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा रौशन है ये चराग़ बुझाया न जाएगा हाल-ए-दिल-ए-ख़राब सुनाया न जाएगा अफ़्सुर्दा इक हसीं को बनाया न जाएगा रानाई-ए-चमन ही तो बुलबुल की जान है हद्द-ए-चमन से बुलबुल-ए-शैदा न जाएगा मुद्दत के बा'द एक ठिकाना मिला मुझे अब आस्ताँ ये छोड़ के जाया न जाएगा जाँ मुज़्महिल उदास नज़र चेहरा सोगवार ऐसे तो उस की बज़्म में जाया न जाए गा है नक़्श-ए-पा किसी का निगाहों के सामने अब सर किसी के दर पे झुकाया न जाएगा नैरंगी-ए-ज़माना का ये रंग है 'क़दीर' अब दोस्त को भी दोस्त बनाया न जाएगा