दहन को ज़ख़्म ज़बाँ को लहू लहू करना अज़ीज़ो सहल नहीं उस की गुफ़्तुगू करना खुले दरीचो को तकना तो हाव-हू करना यही तमाशा सर-ए-शाम कू-ब-कू करना जो काम मुझ से नहीं हो सका वो तू करना जहाँ में अपना सफ़र मिस्ल-रंग-ओ-बू करना जहाँ में आम हैं नुक्ता-शनासियाँ उस की तुम एक लफ़्ज़ में तशरीह-ए-आरज़ू करना दिल-ए-तबाह की ईज़ा-परस्तियाँ मालूम जो दस्तरस में न हो उस की जुस्तुजू करना मैं उस की ज़ात से इंकार करने वाला कौन न हो यक़ीं तो मुझे उस के रू-ब-रू करना जो हर्फ़ लिखना उसे लौह-ए-आब पर लिखना जो नक़्श करना सर-ए-सतह-ए-आबजू करना