दह्र से मिटने का ग़म भी हमें बेजा होगा हम नहीं होंगे अगर कल कोई हम सा होगा देख इस आँख को सुन इस का क़सीदा हम से फिर ये बातें न कभी ऐसा तमाशा होगा तू भी इंसान है तू ने भी मोहब्बत की है तू मोहब्बत के तक़ाज़ों को समझता होगा मर मिटा कौन से अंदाज़ पे तेरे दिल आज उस ने सौ बार तुझे पहले भी देखा होगा आज तक ज़ह्न में हसरत का ग़ुबार उड़ता है आरज़ूओं का कभी क़ाफ़िला गुज़रा होगा आज ख़ालिक़ है जो हर खेत की हरियाली का यही क़ातिल कभी हर बर्ग-ओ-समर का होगा और क्या होगा पस-ए-पर्दा-ए-दिल ऐ 'शौकत' अपनी तस्वीर का इक और सरापा होगा