दैर-ओ-हरम हैं मंज़र-ए-आईन-ए-इख़तिलाफ़ हक़ पर सदा नज़र है मिरी हीन-ए-इख़्तिलाफ़ बैरून-ए-दर हैं सूरत-ओ-मा'नी के पर्दा-दार हैं पर्दा-ए-ख़िफ़ा में क़वानीन-ए-इख़तिलाफ़ है बरक़रार गर्दिश-ए-दौरान-ए-रोज़गार नैरंगी-ए-ख़याल है आईन-ए-इख़्तिलाफ़ मम्नून-ए-रास्ती है हर इक नुक़्ता-ए-नज़र मद्द-ए-नज़र जहाँ में है तमकीन-ए-इख़तिलाफ़ क्या पारा-हा-ए-पैरहन-ए-उन्स बख़िया हों जब हों उधेड़-बुन में मजानीन-ए-इख़्तिलाफ़ लाज़िम हमें है क़त-ए-नज़र मदह-ओ-ज़म से अब तहसीन-ए-इत्तिफ़ाक़ है नफ़रीन-ए-इख़्तिलाफ़ दिलदारियाँ कहाँ हैं वो 'साहिर' कभी जो थीं ख़ातिर-शिकन हैं अब तो मज़ामीन-ए-इख़्तिलाफ़