दमक रहा था बहुत यूँ तो पैरहन उस का ज़रा से लम्स ने रौशन किया बदन उस का वो ख़ाक उड़ाने पे आए तो सारे दश्त उस के चले गुदाज़-क़दम तो चमन चमन उस का वो झूट सच से परे रात कुछ सुनाता था दिलों में रास्त उतरता गया सुख़न उस का अजीब आब-ओ-हवा का वो रहने वाला है मिलेगा ख़्वाब ओ ख़ला में कहीं वतन उस का तिरी तरफ़ से न क्या क्या सितम हुए उस पर मैं जानता हूँ बहुत दोस्त भी न बन उस का वो रोज़ शाम से शमएँ धुआँ धुआँ उस की वो रोज़ सुब्ह उजाला किरन किरन उस का मिरी नज़र में है महफ़ूज़ आज भी 'बानी' बदन कसा हुआ मल्बूस बे-शिकन उस का