दामन पे रंग-ए-लाला-ओ-गुल आना चाहिए दिल ख़ून हो के आँखों से बह जाना चाहिए मेरे सुकूत ही का सही ज़िक्र कू-ब-कू लोगों को एक शग़्ल इक अफ़्साना चाहिए आए वो आरज़ू हो जिसे दीद की मगर महफ़िल में उस की जान का नज़राना चाहिए अब बन गया है दर्द ही वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल अब मुझ को दर्द-ए-दिल का मुदावा न चाहिए फिर दिल को है उसी ख़लिश-ए-तीर की तलब फिर वो निगाह-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना चाहिए 'क़ासिद' सफ़र का अज़्म ही जब तुम ने कर लिया फिर हादसात-ए-रह से न घबराना चाहिए