दामन सबा न छू सके जिस शह-सवार का पहुँचे कब उस को हाथ हमारे ग़ुबार का मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से दिल ख़ाक हो गया है किसी बे-क़रार का ख़ून-ए-जिगर शराब ओ तरश्शह है चश्म-ए-तर साग़र मिरा गिरो नहीं अब्र-ए-बहार का चश्म-ए-करम से आशिक़-ए-वहशी असीर हो उल्फ़त है दाम-ए-आहू-ए-दिल के शिकार का सौंपा था क्या जुनूँ ने गरेबान को मिरे लेता है अब हिसाब जो ये तार तार का 'सौदा' शराब-ए-इश्क़ न कहते थे हम, न पी पाया मज़ा न तू ने अब उस के ख़ुमार का