दम-ए-आख़िर किसी का शिकवा-ए-बेदाद करते हैं

दम-ए-आख़िर किसी का शिकवा-ए-बेदाद करते हैं
नहीं हैं हिचकियाँ रह रह के हम फ़रियाद करते हैं

रिहा हो कर हम इतनी ख़ातिर-ए-सय्याद करते हैं
नशेमन रात को दिन को क़फ़स आबाद करते हैं

फ़ुग़ाँ सुन कर मिरी वो नाज़ से इरशाद करते हैं
कहाँ तू मर रही ऐ मौत तुझ को याद करते हैं

बुढ़ापे में तुझे हम ऐ जवानी याद करते हैं
अब अपनी उम्र आख़िर इस तरह बर्बाद करते हैं

अजब अंदाज़ से कहती हैं दिल की हसरतें मुझ से
हमें घर से निकालें घर वो क्यूँ बर्बाद करते हैं

न आँखों में कभी आँसू न होंठों पर कभी नाले
न हम क़िस्मत को रोते हैं न हम फ़रियाद करते हैं

गले में क्यूँ रग-ए-जाँ बन के ख़ंजर रह गया तेरा
कहीं बिस्मिल से ऐसी शोख़ियाँ जल्लाद करते हैं

ये क्यूँ है दुश्मनों को दोस्तों को जुस्तुजू उस की
वो मुझ पर रहम फ़रमाते हैं या बेदाद करते हैं

गिराना है हमें कुछ बिजलियाँ सय्याद के घर पर
असर-ख़ेज़ इक नई तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ ईजाद करते हैं

दिल-ए-मुज़्तर की तस्वीरें भरी हैं क्या मुरक़्क़े में
कुछ उस्तादी भी इस में मानी-ओ-बहज़ाद करते हैं

हमारे साथ है सय्याद भी यारब मुसीबत में
कलेजा मुँह को आता है जो हम फ़रियाद करते हैं

लिखा किस हुस्न से ख़त में कि हम तुझ से कशीदा हैं
कशिश हर्फ़ों की ऐसी है कि हम भी साद करते हैं

उठूँगा यूँही महशर में लिए मैं उन के ख़ंजर को
गले मेरे लगाते हैं ये क्या जल्लाद करते हैं

कहाँ वो हैं कहाँ हम हैं पड़ा है तफ़रक़ा यारब
वो हम को याद करते हैं हम उन को याद करते हैं

मिरी सूरत जो देखी हम-नशीं से हँस के फ़रमाया
यही कोहसार पर अब मातम-ए-फ़रहाद करते हैं

कभी थोड़ी सी पी ली लब नहीं उस की भी कुछ पर्वा
अलग गोशे में बैठे हैं ख़ुदा को याद करते हैं

मुझे देखा तो बोले मेरे कूचे से निकल जाएँ
ये दिल में चुटकियाँ लेते हैं या फ़रियाद करते हैं

बुज़ुर्गी है कि मरते हैं बुतान-ए-शोख़ पर अब भी
'रियाज़' इस उम्र में क्यूँ आक़िबत बर्बाद करते हैं


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