दाना-ए-गंदुम-ए-बेदार उठाने लगा हूँ ख़ाक हूँ ख़ाक का आज़ार उठाने लगा हूँ कुर्रा-ए-हिज्र से होना है नुमूदार मुझे मैं तिरे इश्क़ का इंकार उठाने लगा हूँ लौ ने सरदार किए रक्खा है शब भर तुम को ऐ चराग़ो मैं ये दस्तार उठाने लगा हूँ ये खुली जंग है और जंग भी है अपने ख़िलाफ़ इस लिए अपने तरफ़-दार उठाने लगा हूँ एक आवाज़ मिरी नींद उड़ा देती है इब्न-ए-आदम तिरे आसार उठाने लगा हूँ