सितम के बा'द भी बाक़ी करम की आस तो है वफ़ा शिआ'र नहीं वो वफ़ा शनास तो है वो दिल की बात ज़बाँ से न कुछ कहें शायद हमारे हाल पे चेहरा मगर उदास तो है ये दिल-फ़रेब बनारस की सुबह का मंज़र अवध की शाम-ए-दिल-आरा हमारे पास तो है भरम रहेगा तिरे मय-कदे का भी साक़ी बला से ख़ाली सही हाथ में गिलास तो है चले ही जाएँ निगाहों से दूर आप मगर हसीन यादों की दौलत हमारे पास तो है करे भले ही न रहमत की मुझ पर तू बारिश तिरे करम की मिरे दिल में एक आस तो है ये सच है उस ने बुझाई न तिश्नगी लेकिन हमारी तिश्ना-दहानी का उस को पास तो है दुरुस्त है कि फ़रिश्ता-सिफ़त नहीं 'दानिश' ख़ुदा गवाह बसीरत की उस को प्यास तो है