डर के जीने से तो बेहतर मिरा मर जाना है कू-ए-जानाँ से गुज़रते हुए घर जाना है मेरे हक़ में कोई नींदों की दुआएँ कर दे मुझ को ख़ुशियों के लिए ख़्वाब नगर जाना है क्यों न आँखें मिरी रोने पे कमर-बस्ता हों आज उस ने मिरे अश्कों को गुहर जाना है इस लिए नाज़ है दरियाओं से निस्बत रख कर उन का अंजाम समुंदर में उतर जाना है जिस को मरना है मिरे भीड़ में रह कर 'अंजुम' हो जहाँ ताज़ा हवा तुझ को उधर जाना है