दर से मायूस तिरे तालिब-ए-इकराम चले कैसी उम्मीद लिए आए थे नाकाम चले ओ मिरी बज़्म-ए-तमन्ना के सजाने वाले लुत्फ़ कर लुत्फ़ कि दुनिया में तिरा नाम चले छीन ले चर्ख़-ए-सितमगार से अंदाज़-ए-ख़िराम कुछ अगर ज़ोर तिरा गर्दिश-ए-अय्याम चले एक वो हैं कि तिरा लुत्फ़-ओ-करम है जिन पर एक हम हैं कि तिरी बज़्म से नाकाम चले अज़्म-ए-रासिख़ ने भी घबरा के क़दम तोड़ दिए कूचा-ए-यार में हम यूँ सहर-ओ-शाम चले मस्त आँखों का अगर एक इशारा हो जाए वज्द में आए सुबू और कहीं जाम चले नींद बीमार-ए-मोहब्बत को कहीं आती है सुब्ह ता-शाम अगर बाद-ए-सुबुक-गाम चले रह-रव-ए-इश्क़ हैं मंज़िल की हमें क्या उम्मीद क्या चले ख़ाक अगर बैठ के दो-गाम चले कौन जाए हदफ़-ए-तीर-ए-नज़र होने को सब्र से काम अगर ऐ दिल-ए-नाकाम चले हैफ़ सद हैफ़ थी उम्मीद-ए-रिफ़ाक़त जिन से आज वो भी मिरे सर थोप के इल्ज़ाम चले एक 'शातिर' के न होने से बिगड़ता क्या है तेरी महफ़िल रहे आबाद तिरा नाम चले