दर्द और ग़म के मारे निकले रात सफ़र सहरा और मैं एक ही जंग के हारे निकले रात सफ़र सहरा और मैं दुख की चादर तान के हम ने हिज्र की रात गुज़ारी थी आँसू जुगनू तारे निकले रात सफ़र सहरा और मैं ग़र्क़ हुए फिर मौज-ए-फ़ना में इक इक कर के सब के सब देखो फ़ानी सारे निकले रात सफ़र सहरा और मैं हम ने जिस की बुनियादों में साँस का सीसा डाला था मिट्टी रेत और गारे निकले रात सफ़र सहरा और मैं मैं ने सोचा था कि ये 'अम्बर' क़िस्मत मेरी बदल देंगे मुझ से बिछड़ के ये सारे निकले रात सफ़र सहरा और मैं