दर्द हद से गुज़र गया होगा तेरा आशिक़ तो मर गया होगा छान कर ख़ाक तेरे कूचे की देर से अपने घर गया होगा तेरी आवाज़ उस के अंदर थी ख़ामुशी से वो डर गया होगा बोझ आहों का और नालों का उस के दिल से उतर गया होगा चूम कर हार तेरे अश्कों का क़ब्र में रक़्स कर गया होगा तेरी आहट से काम लेते ही बाग़ फूलों से भर गया होगा बे-ख़ुदी में क़रार पाता था ख़ैर अब तो सुधर गया होगा नाम अब भी 'मुराद' ज़िंदा है इश्क़ में दे के सर गया होगा