दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं आ कि बीमार मर न जाए कहीं होश कर होश कर मरीज़-ए-अलम ज़ख़्म दिल का ये भर न जाए कहीं एक ही दर से मिल गया सब कुछ माँगने दर-ब-दर न जाए कहीं आप को देखने के बा'द नज़र अब इधर और उधर न जाए कहीं तीरा-बख़्ती पे मत हँसो मेरी फिर मुक़द्दर सँवर न जाए कहीं अपने गेसू सँवार मौज-ए-'नसीम' ज़ुल्फ़ खुल कर बिखर न जाए कहीं