दर्द इतना भी नहीं है कि छुपा भी न सकूँ बोझ ऐसा भी नहीं है कि उठा भी न सकूँ यूँ समाई है इन आँखों में बता भी न सकूँ दिल की दीवार पे तस्वीर सजा भी न सकूँ ख़ैरियत पूछते रहते हो मगर हाल ये है उस की आवाज़ में आवाज़ मिला भी न सकूँ आ मिरे पास ज़रा सुन के बता कहती है क्या दिल की धड़कन जो सर-ए-आम सुना भी न सकूँ जब्र देखा था मगर ऐसा नहीं देखा था ऐसे पहरे हैं कि पलकें मैं उठा भी न सकूँ उँगलियाँ चाक हुआ करती थीं पहले 'साजिद' अब गए हाथ कि मैं हाथ मिला भी न सकूँ