दर्द का कोई अंत नहीं है By Ghazal << बिस्तर-ए-मर्ग पर ज़िंदगी ... सुकूँ तलाश न कर आरज़ू के ... >> दर्द का कोई अंत नहीं है इस में जीवन पिघला जाए दूर गली के नुक्कड़ पर ज़र्द उदासी का डेरा है और लैम्प पोस्ट की रौशनी में तन्हाई का बसेरा है आँगन में जब उतरे परिंदे यादों का चोगा ख़त्म हुआ ख़ाली कटोरा दर्द भरा था दर्द का कोई अंत नहीं है Share on: