दर्द कैसा भी हो क्या होता है दिल तो ये मर के भी अब ज़िंदा है है अगर धूप तो अब धूप सही सर पे मेरे कोई तो साया है किस ने फिर क़त्ल किया सूरज को है फ़ज़ा नम तो ये दिन काला है ख़ुद से मिलने को भी तो वक़्त नहीं कौन आईनों से अब मिलता है नोच ली उस ने फिर आँखें अपनी ज़ीस्त पर उस ने लिखा सहरा है