दर्द के साँचे में ढल कर रह गई ज़िंदगी करवट बदल कर रह गई वक़्त-ए-नज़्ज़ारा निगाह-ए-बारयाब उन के जल्वों में मचल कर रह गई आँख में आँसू मचल कर रह गए मौज दरिया में उछल कर रह गई क्या किया ऐ बुलबुल-ए-आतिश-नवा आशियाँ में बर्क़ जल कर रह गई उन का ग़म मुझ को वदीअ'त हो गया सारी दुनिया हाथ मल कर रह गई