दर्द-ओ-आलाम के नग़्मात को गाने से मिली कुछ तो राहत तुझे अशआ'र सुनाने से मिली मैं तो हर हाल में हूँ तेरी वफ़ा का तालिब कितनी राहत तुझे दिल मेरा दुखाने से मिली राह तारीक है मंज़िल का निशाँ है मादूम रौशनी दिल के चराग़ों को जलाने से मिली हम ने जज़्बात को क़ाबू में हमेशा रक्खा कुछ अज़िय्यत हमें रिश्तों को निभाने से मिली क्यों न बर्बादी-ए-गुलशन पे बहाऊँ आँसू जिस को शादाबी लहू दिल का जलाने से मिली ये अलग बात कि आसाइश-ए-दुनिया है बहुत दिल को तस्कीन तिरे लौट के आने से मिली इक ज़रा मा'रिफ़त-ए-हक़ की तजल्ली 'अजमल' सर-ए-तस्लीम ब-सद-शौक़ झुकाने से मिली