दर्द-ए-दिल वो है कि राहत से सरोकार नहीं ताक़त-ए-सब्र नहीं क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार नहीं तेग़-ए-अबरू को सँभालो मैं झुकाऊँ गर्दन जान देने से तो जाँ-बाज़ को इंकार नहीं दूँ मैं किस चीज़ से तश्बीह तहय्युर है मुझे सूरत-ए-गुल तो मिरा ज़ख़्म-ए-दिल-ए-ज़ार नहीं कैसी मुश्किल में फँसाया है मोहब्बत ने मुझे बैठना जब्र है और ताक़त-ए-रफ़्तार नहीं किस लिए मैं दिल-ए-सद-चाक रखूँ पहलू में गेसू-ए-यार को शाने से सरोकार नहीं दिल वो किस का है नहीं जो तिरे क़दमों पे निसार कौन है वो जो तिरा तालिब-ए-दीदार नहीं दहर-ए-फ़ानी में परेशान है सारी ख़िल्क़त ऐसा कोई है जो मज्मूआ-ए-अफ़्क़ार नहीं नाख़ुन-ए-दश्त-ए-जुनूँ देखिए क्या करता है दामन-ओ-जेब-ओ-गरेबाँ में कोई तार नहीं गर वहाँ जाओ 'जमीला' तो ये कहना उस से गो मैं काहीदा हूँ पर इश्क़ तिरा बार नहीं