दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ सरगुज़श्त-ए-इश्क़ की हैं सुर्ख़ियाँ दिल है मेरा माइल-ए-फ़रियाद आज देख कर उन के तग़ाफ़ुल का समाँ इक ज़रा रुक जाइए सुन लीजिए इस दिल-ए-रंजूर की भी दास्ताँ आप ने तो इक नज़र देखा फ़क़त जल गया ताब-ओ-तवाँ का आशियाँ ऐ दिल-ए-ग़म-गीं न रो इस दौर में कौन सुनता है किसी की दास्ताँ आतिश-ए-उल्फ़त तो कब की जल बुझी रात दिन सीने से उठता है धुआँ नज़्म-ए-मय-खाना बदल कर रख दें हम आओ ऐ ज़िंदा-दिलाँ 'तिश्ना'-लबाँ