दर-ए-ख़ज़ीना-ए-सद-राज़ खोलता है कोई न जाने कौन है वो मुझ में बोलता है कोई अजब कुरेद अजब बेकली सी है जैसे मुझे मिरी रग-ए-जाँ तक टटोलता है कोई हुजूम है मिरे सीने में अब्र-पारों का गुहर बिखेरने वाला हूँ रोलता है कोई हयात-ओ-मर्ग-ओ-तुलूअ-ओ-ग़ुरूब है दुनिया कि पर समेटता है कोई तोलता है कोई हवा का लम्स ये बूँदें ख़ुनुक ख़ुनुक 'ख़ुर्शीद' मुझे तो आज फ़ज़ाओं में घोलता है कोई