दर-हक़ीक़त रोज़-ओ-शब की तल्ख़ियाँ जाती रहीं ज़िंदगी से सब मिरी दिलचस्पियाँ जाती रहीं नाम था जब तक तो हम पर सैकड़ों इल्ज़ाम थे हो गए गुमनाम तो रुस्वाइयाँ जाती रहीं अब ख़यालों में वो मेरे साथ सुब्ह-ओ-शाम है जब से वो बिछड़ा है सारी दूरियाँ जाती रहीं इस क़दर तन्हाइयों ने तोड़ डाला है मुझे जिस्म से हो कर जुदा परछाइयाँ जाती रहीं ताले पड़ जाएँगे होंटों पर तुम्हारे सोच लो मेरे होंटों से अगर ख़ामोशियाँ जाती रहीं लग रहा है ख़त्म होना चाहता है सिलसिला अब दिल-ए-नादाँ की बेताबियाँ जाती रहीं