दरिया गुज़र गए हैं समुंदर गुज़र गए प्यासा रहा मैं कितने ही मंज़र गुज़र गए उस जैसा दूसरा न समाया निगाह में कितने हसीन आँखों से पैकर गुज़र गए कुछ तीर मेरे सीने में पैवस्त हो गए कुछ तीर मेरे सीने से बाहर गुज़र गए आँसू बयान करने से क़ासिर रहे जिन्हें क्या क्या न ज़ख़्म ज़ात के अंदर गुज़र गए इक चोट दिल पे लगती रही है तमाम शब दिल की ज़मीं से यादों के लश्कर गुज़र गए वो ज़ब्त था कि आह न निकली ज़बान से दिल पे हमारे कितने ही ख़ंजर गुज़र गए मंज़िल थी वो कि होती गई दूर ही 'ज़फ़र' कितने ही रह में मील के पत्थर गुज़र गए