दरिया में दूर मौज-ए-रवानी के पार था कुछ तैरता हुआ था जो पानी के पार था यूँ तो दिखाई देता था बढ़ कर नुक़ूश से छूने गए ज़रा तो निशानी के पार था उन्वान और कुछ हुआ आख़िर किताब का किरदार जाने किस का कहानी के पार था किस ने किसे सदाएँ दी माज़ी की आड़ में जाने ये कौन याद पुरानी के पार था साहिल पे जैसे हम तो समाअ'त में ग़र्क़ थे लहजे में इस तरह वो ज़बानी के पार था 'परवेज़' शुक्र है कि वो लफ़्ज़ों में ज़म हुआ इक हर्फ़ था जो तेज़-रवानी के पार था